Jain dharm (जैन धर्म)


Jain dharm (जैन धर्म)


  • जैन शब्द जिन से बना हैं जिसका अर्थ हैं विजेता | 
  • जैन धर्म के संस्थापक ऋषभदेव (आदिनाथ) को माना जाता है जो कि जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भी थे | 
  • जैन धर्म के संस्थापक ऋषभदेव का प्रतीक चिन्ह बैल को माना जाता हैं | 
  • पार्श्वनाथ (23वें) तथा महावीर स्वामी (24वें) तीर्थंकर थे |  
  • जैन तीर्थंकर ऋषभदेव तथा अरिष्टनेमि (नेमिनाथ) का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता हैं | 

पार्श्वनाथ


  • पार्श्वनाथ का प्रतीक चिन्ह साँप को माना जाता हैं | 
  • ये वाराणसी से थे | 
  • इनके पिता का नाम अश्वसेन तथा माता का नाम वामा देवी था | 
  • पार्श्वनाथ के चार मुख्य उपदेश थे -

  1. अहिंसा 
  2. अमृषा (झूठ ना बोलना)
  3. अचौर्य/अस्तेय  (चोरी न करना)
  4. अपरिग्रह (सम्पति अर्जित नहीं करना)

  • महावीर स्वामी  ने इन सभी उपदेशों को ग्रहण किया और इनमे एक और उपदेश ब्रह्मचर्य को जोड़ा | 
  • अहिंसा, अमृषा, अचौर्य/अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य इन्हें पंचमहाव्रत कहा जाता हैं | 

Jain dharm (जैन धर्म)



महावीर स्वामी का जीवन परिचय 



  • इनका प्रतीक चिन्ह सिंह को माना जाता हैं | 
  • महावीर स्वामी का जन्म 540 BC में वैशाली के पास कुण्डलग्राम में हुआ था | 
  • इनके बचपन का नाम वर्द्धमान था | 
  • इनके पिता का नाम सिद्धार्थ (वज्जि संघ के ज्ञात्रक क्षत्रिय कुल के प्रधान) था | 
  • इनकी माता का नाम त्रिशला (लिच्छवी नरेश चेटक की बहन)  था | 
  • इनकी पत्नी का नाम यशोदा तथा पुत्री का नाम प्रियदर्शिनी था | 
  • महावीर स्वामी ने 30 वर्ष की आयु में सत्य की खोज के लिए गृह त्याग कर दिया था |  


बौद्ध धर्म - https://govexamkitayari.blogspot.com/2020/10/boudh-dharm.html


ज्ञान प्राप्ति 


  • महावीर स्वामी को 12 वर्ष की तपस्या के बाद ज्ञान की प्राप्ति हुई | 
  • जम्भिकग्राम के पास ऋजुपालिका नदी के तट पर साल वृक्ष के नीचे महावीर स्वामी को ज्ञान (कैवल्य) की प्राप्ति हुई थी | 
  • ज्ञान प्राप्ति के बाद उन्हें कैवलिन, जिन (विजेता), निर्गन्थ (बंधन रहित), अर्हंत (योगी) महावीर आदि नामों से जाना जाने लगा | 
  • इनके प्रथम शिष्य का नाम जमालि (दामाद) था | 
  • इन्होने प्रथम उपदेश राजगृह में दिया था | 


जीवन का अंत 


  • 468 BC में लगभग 72 वर्ष की आयु में महावीर स्वामी की मृत्यु हो गयी थी | 
  • राजगृह के पास पावापुरी में कार्तिक कृष्ण अमवस्या को इन्हे मोक्ष की प्राप्ति हुई थी | 


जैन साहित्य 


  • जैन साहित्यों की मुख्य रूप से भाषा अर्द्ध मगधी थी | जबकि जैन धर्म का प्रचार-प्रसार प्राकृत भाषा किया गया था | 
  •  जैन साहित्य के कुछ प्रमुख ग्रंथ या पुस्तकें हैं -
  • अंग - 12 (जैन धर्म के सिद्धान्तों का वर्णन)
  • उपांग -  12 (उपांग में 12 अंग को विस्तार से समझाया गया हैं)
  • प्रकीर्ण - 10 (ग्रंथो के परिशिष्ट)
  • छेद सूत्र - 6 (भिक्षुकों के लिए नियम)
  • मूल सूत्र - 4 ( जैन भिक्षुकों के लिए नियम)
  • इन सभी जैन साहित्यों को आगम कहा जाता हैं |

त्रिरत्न 


  • महावीर स्वामी ने अपने उपदेशों में बताया कि संसार दुःखमय हैं तथा दुःख का कारण कर्मफल हैं | 
  • दुखों से मुक्ति के लिए या निर्वाण प्राप्ति के लिए उन्होंने तीन मार्ग बताए जिन्हें त्रिरत्न कहा जाता हैं -

  1. सम्यक ज्ञान - वास्तविक ज्ञान ही सम्यक ज्ञान हैं | 
  2. सम्यक दर्शन - सत्य में विश्वास ही सम्यक दर्शन हैं | 
  3. सम्यक आचरण - सुख-दुःख में समान भाव रखना ही सम्यक आचरण हैं | 


जैन महासंगीतियाँ


                

संगीति

समय

स्थल

संगीति अध्यक्ष

प्रथम

300 BC

पाटलिपुत्र

स्थूलभद्र

द्वितीय 

512 AD 

वल्लभी 

देवर्षि क्षमाश्रवण 

 

  • प्रथम जैन संगीति में जैन साहित्य के 12 अंगो का संकलन किया गया और इसी काल में जैन धर्म दो भागों में विभाजित हो गया | 
  • द्वितीय जैन संगीति में धर्म ग्रंथों को अंतिम रूप से संकलित कर लिपिबद्ध किया गया | 



जैन धर्म का विभाजन


  • महावीर स्वामी ने संघ की स्थापना की जिसके माध्यम से वे जैन धर्म से सम्बंधित विचारों को प्रसारित करना चाहते थे |  इसमें 11 अनुयायी थे जिन्हे गणधर कहा जाता हैं | 
महावीर स्वामी की मृत्यु के बाद इन्ही गणधरों ने संघ को आगे बढ़ाया तथा सुर्धमन को संघ का अध्यक्ष बनाया गया| 
  • आगे चलकर इन गणधरों में जैन धर्म के विचारों को लेकर मतभेद होने लगे तथा चन्द्रगुप्त मौर्य के काल में जैन धर्म दो भागों में विभाजित हो गया - (i) श्वेताम्बर  (ii) दिगम्बर 

 

श्वेताम्बर 

दिगम्बर

स्थूलभद्र (संस्थापक)

भद्रबाहु (संस्थापक)

श्वेत वस्र धारण करते हैं |

वस्त्रों का परित्याग करते हैं |

महावीर स्वामी को भगवान् मानते है  तथा उनकी मूर्ति पूजा करते हैं |

सामान्य पुरुष मानते हैं जिन्होंने इन्द्रियों को वश में कर लिया



अन्य प्रमुख बिंदु -

  •  भगवती सूत्र - महावीर स्वामी एवं अन्य जैन मुनियों जीवन चरित्र का वर्णन | 
  • कल्पसूत्र - इसमें जैन धर्म के प्रारंभिक इतिहास की जानकारी मिलती हैं | इसके रचनाकार भद्रबाहु थे | 
  • जैन धर्म अहिंसा पर अत्यधिक बल देता हैं | 
  • जैन धर्म आत्मा, पुर्नजन्म, कर्म में विश्वास करता है | 
  • स्यादवाद एवं अनेकान्तवाद का सम्बन्ध जैन धर्म से हैं | 
  • जैन धर्म वर्ण व्यवस्था को स्वीकार नहीं करता बल्कि समानता पर बल देता हैं | 



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