Sindhu ghati sabhyata (सिंधु घाटी सभ्यता)
भारत का इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता से शुरू होता हैं | यह विश्व की महत्वपूर्ण 4 प्राचीन सभ्यताओं में से एक हैं | इससे पहले हम वैदिक सभ्यता को ही सबसे प्राचीन सभ्यता मानते थे लेकिन ब्रिटिश काल में विभिन्न स्तरों पर खोज हुई और सिंधु घाटी सभ्यता का ता चला |
आज हम सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में विस्तार से जानेंगे | हमारे एग्जाम में भी सिंधु घाटी सभ्यता से काफी सवाल पूछे जाते हैं आज हम इसी के बारे में पढ़ेंगे -
Sindhu ghati sabhyata (सिंधु घाटी सभ्यता)
सिंधु घाटी सभ्यता की विस्तार अवधि 2550-1750 ई.पू. थी | राखल दास बनर्जी के अनुसार इस सभ्यता के निर्माता द्रविड़ थे | यह सभ्यता आद्य ऐतिहासिक काल के अंर्तगत आती हैं |
इतिहास में हम 3 नाम अक्सर सुनते हैं जिनका मतलब शायद सभी को नहीं पता हो तो थोड़ा सा जान लेते हैं-
प्रागैतिहासिक काल - ऐसा समय जिसका कोई लिखित वर्णन नहीं हैं |
आद्य-ऐतिहासिक काल - ऐसा समय जिसकी लिखित जानकारी तो हमे मिली हैं लेकिन हम उसको पढ़ नहीं सकते हैं क्योंकि उस समय के अक्षर या लिपि हमारी समझ से बाहर हैं |
ऐतिहासिक काल - ऐसा समय जिसकी लिखित जानकारी भी मिली हैं और जिसको पढ़ा भी जा सकता हैं |
सिंधु घाटी सभ्यता की खोज
सिंधु घाटी सभ्यता की खोज के सम्बन्ध में कुछ व्यक्तियों के नाम आते हैं जिनकी जानकारी हमे होनी चाहिए, चलिए देखते हैं -
- चार्ल्स मैसन - 1826 में चार्ल्स मैसन ने पकिस्तान क्षेत्र का दौरा किया और इन्हे सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में कुछ बेसिक जानकारी मिली और ये जानकारी इन्होने अपनी पत्रिका Narrative of journeys में दी थी |
- अलेक्जेंडर कनिंघम - 1853-1856 के मध्य इन्होने कई बार इस क्षेत्र का दौरा किया लेकिन इन्हे पूर्ण सफलता नहीं मिली |
- बर्टन बंधु - 1856 में कराची से लाहौर के बीच रेलवे लाइन का काम चल रहा था उस समय वहाँ से कुछ अवशेष मिले और इसकी जानकरी सरकार को दी गयी | ( बर्टन बंधु 2 भाई थे - जेम्स बर्टन, विलियम बर्टन)
- जॉन मार्शल - 1902 में लॉर्ड कर्जन द्वारा जॉन मार्शल को भारतीय पुरातात्विक विभाग का महानिदेशक बनाया गया | और जॉन मार्शल के निर्देशन में 1921 में रायबहादुर दयाराम सहानी के नेतृत्व में खुदाई करवाई गयी और हड़प्पा नामक स्थल से इसके अवशेष प्राप्त हुए |
- 1924 में जॉन मार्शल ने पुरे विश्व के समक्ष सिंधु घाटी में एक नवीन सभ्यता की खोज की घोषणा की |
सिंधु घाटी सभ्यता का नामकरण
सिंधु घाटी सभ्यता को अन्य कई नामों से जाना जाता हैं | चलिए देखते हैं इसके और क्या नाम हैं और उनके पीछे की वजह क्या हैं....
- शुरुआत में इसमें जितने स्थल मिले अधिकांश सिंधु नदी या उसकी सहायक नदियों के आसपास मिले इसलिए इसे सिंधु घाटी सभ्यता कहा जाता हैं |
- फिर उसके बाद धीरे धीरे दूसरी कई जगहों पर इसके इसके अवशेष मिलने लगे और नाम को लेकर मतभेद होने लगा तब ये तय किया गया की सबसे पहले खोजा गया स्थल हड़प्पा हैं इसलिए इसका नाम हड़प्पा सभ्यता रखा गया |
- सबसे पहले नगरों की जानकारी इसी सभ्यता से मिली इसलिए इसे नगरीय सभ्यता भी कहते हैं
- सबसे पहले कांस्य (तांबा + टिन = कांसा) के प्रयोग की जानकारी मिलने के कारण इसे कांस्ययुगीन सभ्यता भी कहते हैं |
सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार
सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार का विस्तार पंजाब, सिंध, ब्लूचिस्तान, राजस्थान, गुजरात, जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश तक हैं |
सिंधु घाटी सभ्यता की विशेषताएँ
नगरीय योजना :- इस सभ्यता की महत्वपूर्ण विशेषता नगर योजना थी |
- मकान पक्की ईंटों के बने होते थे तथा सड़के सीधी थी |
- प्रत्येक सड़क और गली के दोनों ओर पक्की नालियाँ बनाई गई थी |
- सड़कों तथा गलियों को एक ग्रिड पद्धति में बनाया गया था जो एक-दूसरे को समकोण पर काटती थी |
आर्थिक जीवन :- सिंधु घाटी सभ्यता की अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान थी | लेकिन यहां लोग पशुपालन तथा व्यापार को भी महत्व देते थे |
- यहां के लोग तिल, सरसों, मटर, ज्वार आदि अनाज पैदा करते थे |
- यहां के प्रमुख खाद्यान जौ तथा गेंहूँ थे | गुजरात के कुछ स्थानों से बाजरा उत्पादन के संकेत भी मिले हैं |
- विश्व में सबसे पहले यहीं के लोगो के लोगों ने कपास की खेती प्रारम्भ की थी | यहाँ से सूती वस्त्रो के अवशेष मिले हैं|
- यहां के लोग कृषि के साथ-साथ पशुपालन भी किया करते थे | यह लोग दूध,कृषि कार्य, भार ढोने के लिए इनका प्रयोग किया करते थे |
- यहाँ के लोग हाथी और गेंडे से परिचित थे |
- सिंधु घाटी सभ्यता में सबसे महत्त्वपूर्ण पशु एक सींग वाला गैंडा तथा दूसरा महत्त्वपूर्ण पशु कूबड़ वाला सांड था |
- बैल, गाय , भैंस, बकरी, कुत्ता, भेड़ आदि पशु पाला करते थे |
- यहाँ से मिली टेराकोटा की मूर्ति तथा मोहरों पर एक सींग वाले सांड के चित्र मिले हैं |
- इस सभ्यता में तौल के बाट 16 अथवा इसके गुणज भार के थे |
- यहां की मोहरें तथा वस्तुयें पश्चिमी एशिया तथा मिस्र में मिली हैं जिससे यह पता चलता हैं की इनके आपस में व्यापारिक सम्बन्ध थे | अधिकाँश मोहरों का निर्माण सेलखड़ी से हुआ हैं |
- लोथल हड़प्पाकालीन बंदरगाह था |
- यहाँ के लोग प्राचीन ‘लैपिस लाजुली’ मार्ग से व्यापार करते थे |
- यहां के लोग बर्तन निर्माण, आभूषण निर्माण, धातु निर्माण, कपडा बनाने का व्यवसाय आदि उद्योगों से परिचित थे और इनका व्यापार करते थे |
- चाक पर मिट्टी के बर्तन बनाना, खिलौने बनाना, मुद्राओं का निर्माण, बढ़ईगिरी आदि भी प्रमुख उद्योग धंधो में थे |
सामाजिक जीवन - खुदाई में मिली नारियों की मूर्तियों से पता से पता चलता हैं कि इनका परिवार मातृसत्तात्मक था |
- समाज व्यवसाय के आधार पर 4 भागों में बंटा हुआ था- विद्वान, योद्धा, व्यापारी तथा शिल्पकार और श्रमिक |
- यहां के लोग शाकाहारी तथा मांसाहारी दोनों प्रकार का भोजन करते थे |
- जुआ खेलना, शिकार करना, नाच-गाना इनके आमोद-प्रमोद के साधन थे | पासा इस युग का प्रमुख खेल था |
धार्मिक जीवन - सिंधु घाटी सभ्यता के लोग वृक्षों तथा पशुओं की पूजा करते थे |
- टेराकोटा की लघुमूर्तियों पर एक महिला का चित्र पाया गया है इनमें से एक लघुमूर्ति में महिला के गर्भ से उगते हुए पौधे को दर्शाया गया है।
- यह लोग पृथ्वी को उर्वरता की देवी मानते तथा पृथ्वी की पूजा करते थे |
- स्वास्तिक चिन्ह सम्भवतः हड़प्पा सभ्यता की देन हैं |
- पुरुष देवता के रूप में मुहरों पर तीन शृंगी चित्र पाए गए हैं जो कि योगी की मुद्रा में बैठे हुए हैं |
- देवता के एक तरफ हाथी, एक तरफ बाघ, एक तरफ गैंडा तथा उनके सिंहासन के पीछे भैंसा का चित्र बनाया गया है। उनके पैरों के पास दो हिरनों के चित्र है। चित्रित भगवान की मूर्ति को पशुपतिनाथ महादेव की संज्ञा दी गई है।
सभ्यता का पतन - यह सभ्यता लगभग 1000 साल रही | इसके पतन कारणों को लेकर इतिहासकारों के मत अलग-अलग हैं जैसे- जलवायु परिवर्तन, बाढ़, नदियों के जलमार्ग में परिवर्तन, भूकंप, आर्यों का आक्रमण आदि |
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