भारत में संवैधानिक विकास
संविधान, किसी भी देश की शासन व्यवस्था को चलाने के लिए तैयार किया गया एक प्रारूप या दस्तावेज हैं | यह लिखित भी हो सकता हैं और अलिखित भी | भारत का संविधान लिखित संविधान हैं |
भारत में संवैधानिक विकास की शुरुआत ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना से मानी जा सकती हैं | ब्रिटिश सरकार 1600 ईस्वी में ईस्ट इंडिया कंपनी के रूप में भारत आयी थी | जिसका उद्देश्य भारत में व्यापर करना था | लेकिन भारत आने के बाद जब उन्होंने यहां के राजाओं की शासन व्यवस्था देखी तो उन्हें लगा की वो यहां व्यापर के साथ शासन भी कर सकते हैं |
इसी शासन नीति को आगे बढ़ाते हुए अंग्रेजों ने कई युद्ध किये जैसे - प्लासी का युद्ध (1757), बक्सर का युद्ध (1764) और इनमे अंग्रेजों को जीत मिली तथा 1765 तक कई क्षेत्रों जैसे उड़ीसा,बिहार आदि पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया | बंगाल में पूरी तरह अंग्रेजों का शासन हो चुका था |
अब ब्रिटिश सरकार ने अपने शासन को ओर मजबुत बनाने के लिए समय-समय पर बहुत से एक्ट पारित किये | और ऐसा माना जाता हैं की ये जो एक्ट थे ये हमारे संविधान की एक तरह से पृष्ठभूमि थे |
इस प्रकार हम भारत के संवैधानिक विकास के समय को 2 भागों में विभाजित कर सकते हैं- (i) ईस्ट इंडिया कंपनी शासन काल (1773-1857) (ii) क्राउन का शासन (1858-1947)
आज इस आर्टिकल में हम उन्ही अधिनियम एवं एक्ट के बारे में पढ़ेंगे -
constitution development of india |
रेग्युलेटिंग एक्ट, 1773
ईस्ट इंडिया कंपनी पर नियंत्रण बनाये रखने के लिए ब्रिटिश सरकार ने 1773 में रेग्युलेटिंग एक्ट पारित किया | इस एक्ट के अंतर्गत कुछ प्रावधान किये थे -
- इस अधिनियम द्वारा बंगाल के गवर्नर को बंगाल का गवर्नर जनरल बना दिया गया तथा उसकी सहायता के लिए चार सदस्यों की कार्यकारी परिषद का गठन किया गया |
- बंगाल के पहले गवर्नर जनरल बने लार्ड वारेन हेस्टिंग्स |
- बम्बई और मद्रास प्रेसीडेन्सियों को भी बंगाल प्रेसीडेन्सी के अधीन कर दिया अर्थात पहले बम्बई और मद्रास के गवर्नर थे वो अपने हिसाब से काम करते थे लेकिन अब वो बंगाल के गवर्नर जनरल के अधीन हो गए |
- इस अधिनियम द्वारा 1774 में कलकत्ता सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गयी जिसमे मुख्य न्यायधीश (सर एलिजाह इम्पे) और तीन अन्य न्यायधीश थे | इसे सिविल, आपराधिक, नौसेना तथा धार्मिक मामलों में अधिकारिता प्राप्त थी |
- बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स का गठन किया गया जिसके माध्यम से ब्रिटिश सरकार का कंपनी पर नियंत्रण सशक्त हो गया|
- इस एक्ट के लागू होने के बाद कंपनी के लिए यह अनिवार्य हो गया की वह राजस्व, नागरिक और सैन्य मामलों की जानकारी ब्रिटिश सरकार को दे |
पिट्स इंडिया एक्ट, 1784
- रेग्युलेटिंग एक्ट की कमियों को दूर करने के लिए पिट्स इंडिया एक्ट लाया गया था |
- इस एक्ट के द्वारा कंपनी के व्यापारिक तथा राजनैतिक कार्यो को अलग-अलग कर दिया गया था |
- कंपनी के व्यापारिक कार्यो का कंट्रोल कंपनी के निदेशक के हाथों में रहने दिया तथा राजनैतिक कार्यो के लिए बोर्ड ऑफ़ कन्ट्रोल की स्थापना की गयी |
- भारत में गवर्नर जनरल की सहायता के लिए जिस चार सदस्यों की कार्यकारी परिषद का गठन किया गया था उन सदस्यों की संख्या 4 से घटाकर 3 कर दी गयी थी |
1786 का अधिनियम
- इस अधिनियम के द्वारा गवर्नर जनरल को प्रधान सेनापति की शक्तियाँ प्रदान की गयी |
- इस अधिनियम के द्वारा गवर्नर जनरल को यह अधिकार भी दिया गया की विशेष परिस्थितियों में गवर्नर जनरल अपनी परिषद के निर्णय को निरस्त कर अपना निर्णय लागू कर सकता हैं |
1793 का चार्टर एक्ट
- बम्बई और मद्रास प्रेसीडेन्सियों के गवर्नर को भी ये अधिकार दिया गया की वो अपने परिषदों के निर्णय को निरस्त कर सकते हैं |
- बोर्ड ऑफ़ कन्ट्रोल के सदस्यों का वेतन भारतीय राजस्व से दिया जाने लगा |
1813 का चार्टर एक्ट
- इस चार्टर एक्ट के द्वारा भारत में कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया |
- इस एक्ट के द्वारा ईसाई मिशनरियों को भारत में धर्म प्रचार की अनुमति दी गयी |
1833 का चार्टर एक्ट
- इस चार्टर एक्ट के द्वारा बंगाल के गवर्नर जनरल को सम्पूर्ण भारत का गवर्नर जनरल बना दिया गया | और इस तरह देश की शासन प्रणाली का केन्द्रीयकरण कर दिया गया |
- भारत के प्रथम गवर्नर जनरल - लार्ड विलियम बैटिंक |
- कंपनी के समस्त व्यापारिक अधिकार को समाप्त कर दिया गया तथा कंपनी को पूरी तरह से राजनैतिक और प्रशासनिक कार्यो की जिम्मेदारी दी गयी |
- गवर्नर जनरल की परिषद में विधि (कानून) सदस्य के रूप में चौथे सदस्य को शामिल किया गया |
- गवर्नर जनरल को यह अधिकार दिया गया की वह अपनी परिषद के साथ मिलकर पुरे भारत के लिए कानून बना सकता हैं | लेकिन बोर्ड ऑफ़ कन्ट्रोल इस कानून को अस्वीकृत कर स्वयं कानून बना सकता था |
- 1834 में लार्ड मैकाले की अध्यक्षता में एक विधि आयोग का गठन किया गया जिसमे 4 सदस्य थे |
- दास प्रथा को गैर-क़ानूनी घोषित कर दिया गया |
- कंपनी के अधीन किसी पद पर नियुक्ति के मामले में भारतियों के साथ भेदभाव को निषिद्ध कर दिया गया |
1853 का चार्टर एक्ट
- 1853 के चार्टर एक्ट के द्वारा विधायी कार्यो को प्रशासनिक कार्यो से अलग करने की व्यवस्था की गयी |
- विधायी निर्माण हेतु भारत में एक पृथक विधान परिषद की स्थापना की गयी जिसमे 12 सदस्य थे |
- इस एक्ट के द्वारा सिविल सेवा भर्ती एवं चयन के लिए खुली प्रतियोगिता परीक्षा को शुरू किया गया | 1854 में भारतीय सिविल सेवा के लिए मैकाले समिति का गठन किया गया |
- भारत में कंपनी का भू-क्षेत्र का विस्तार काफी बढ़ जाने के कारण, इस एक्ट के द्वारा दो नए प्रांतों सिंध और पंजाब को विभाजित किया गया।
इस प्रकार यह लास्ट चार्टर एक्ट था तो ब्रिटिश सरकार द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी को दिया गया | इसके बाद ईस्ट इंडिया कम्पनी का शासन समाप्त हो जाता हैं और भारत में शासन की सारी बागडोर ब्रिटिश क्राउन के हाथ में आ जाती हैं और यह 1858 से 1947 तक चलता हैं |
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